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बैंगलोर की हालिया घटनाओ को देख कर ऐसा लगता है किस हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं , क्या हमे यही सिखया गया है , क्या हम ऐसे ही थे , नहीं बिलकुल नहीं, अपितु इस पर्याय में हम सिर्फ इतना कह सकते हैं की हम पश्चिमी सभयता को अपनानाने में इतना खो गए हैं की हमे अपना कुछ याद ही नहीं रह गया, बात ये नहीं की वहां क्या हुआ बल्कि ये सोचने की ज़रूरत है की ऐसा क्या हुआ , ऐसा नहीं की इस तरह की ये पहली घटना है , क्या हम अपने आने वाली पीढी को सही दिशा में ले जा रहे हैं, एक ऐसा सहर जहाँ लड़का और लड़की दोनों सामान रूप से अपना जीवन निर्वाह कर रहे है वहां ऐसी घटना हमे बताती है की हम आज भी अपनी क्रूर मानसिकता का सीकार हैं, हम पश्चिमी सभ्यता को तो दिल खोल कर अपना रहे हैं लेकिन हम उनसे सिर्फ उनका खान पान और पहनावा ही कॉपी कर रहे हैं , क्या हमने कभी उनका नेचर अपनाने की कोसिस की , नहीं हम बस पागलो की तरह उनकी कुछ चीज़ों का अनुसरण किये जा रहे हैं, हमे ज़रूरत है अपनी मानसिकता बदलने की।
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